जिनगी कें अखबार बनौने बैसल छी
गजल
जिनगी कें अखबार बनौने बैसल छी
हम घरकें बाजार बनौने बैसल छी ।
श्रद्धा, ममता, स्नेह, प्रेम, आनंद पूज्य थिक
हम सबकें ऐंठार बनौने बैसल छी ।
सोझां केर संसारकें माया मानी हम
हम मायाकें संसार बनौने बैसल छी ।
गांधी दुनिया जितलनि सत्य, अहिंसासं
प्रेम कें हम व्यापार बनौने बैसल छी ।
ब्याह थीक दू अंतरात्मा केर मिलन
हम जातिक ओहार लगौने बैसल छी ।
शिक्षा मैया हरती सब दुख जीवन केर
हम मूर्तिक अंबार लगौने बैसल छी ।
नियम बहुत अछि भष्टाचारसं लडबा लए
हम सबकें लाचार बनौने बैसल छी ।
“विदेह” – अंक ९८ - १५ जनवरी २०१२ मे प्रकाशित ।
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