Saturday 21 January 2012

जिनगी कें अखबार बनौने बैसल छी


जिनगी कें अखबार बनौने बैसल छी
गजल 

जिनगी कें अखबार बनौने बैसल छी
हम घरकें बाजार बनौने बैसल छी ।

श्रद्धा, ममता, स्नेह, प्रेम, आनंद पूज्य थिक
हम सबकें ऐंठार बनौने बैसल छी ।

सोझां केर संसारकें माया मानी हम
हम मायाकें संसार बनौने बैसल छी ।

गांधी दुनिया जितलनि सत्य, अहिंसासं
प्रेम कें हम व्यापार बनौने बैसल छी ।

ब्याह थीक दू अंतरात्मा केर मिलन
हम जातिक ओहार लगौने बैसल छी ।

शिक्षा मैया हरती सब दुख जीवन केर
हम मूर्तिक अंबार लगौने बैसल छी ।

नियम बहुत अछि भष्टाचारसं लडबा लए
हम सबकें लाचार बनौने बैसल छी ।

“विदेह” – अंक ९८ - ‍१५ जनवरी २०१२ मे प्रकाशित ।

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