तिलक प्रथा केँ बंद करू
हे मिथिला केर भाग्य
- विधाता, नारा आइ बुलंद करू ।
चाही जँ उद्धार मैथिलीक, तिलक प्रथाकेँ बंद करू ।।
छथि उदासे बहिन मैथिली,
आइ
जागृतिक
भोरमे
।
स्नेह ने
पाबि रहलि बेचारी ,
अपनो
माइक
कोरमे ।
देखि मलिन आकृति निज जनकक,
डूबल
सदिखन नोरमे ।
हो पौरुष तऽ
एहि फंदा सँ, मिथिलाकेँ स्वछन्द करू ।
चाही जँ उद्धार मैथिलीक, तिलक प्रथाकेँ बंद करू ।।
परिणय
मे काटर केर परिचय,
थीक परम व्यभिचार ।
अंत होइछ की एहि
व्यभिचारक,
अछि जनइत
संसार ।
दरकि रहल अछि छाती जननिक,
देखि ई अत्याचार ।
प्रायश्चित करए समाज एहि पापक, सभ क्यो तकर प्रबंध
करू ।
चाही जँ उद्धार मैथिलीक, तिलक प्रथाकेँ बंद करू ।।
भाषन आ आश्वासन
दै
छथि,
बड़का
- बड़का
नेता ।
विश्व - समाजक अभिनेता आ
नव
युग केर प्रणेता ।
फेकत थूक बहिन
हुनका
पर
जे नहि
डेग
बढ़ेता ।
करू दूर ई
रोग समाजक , आब ने अधिक बिलम्ब
करू ।
चाही जँ उद्धार मैथिलीक, तिलक प्रथाकेँ बंद करू ।।
खेद जे हम मैथिल एखनो धरि,
अपने घरमे
हेरायल
छी ।
कारण जे हम सभ एखनो धरि,
बाट अपन
भोतियायल छी ।
तेँ ने अपने
गाड़ल कऽल मे,
हम दिन - राति
पेरायल छी ।
विषम समस्या अपन समाजक, सभक्यो
मिलि कय अंत करू ।
चाही जँ उद्धार मैथिलीक, तिलक प्रथाकेँ बंद करू ।।
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( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह “तोरा अंगना मे” क गीत सं. ११ )
संगहि “गीतक फुलवारी” फुलवारी मे सेहो प्रकाशित ।
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