बाजू ओझाजी रामो-राम
जेल बना नित खेल करैछी,
तऽ भेटत कोना सम्मान ।
बाजू ओझाजी रामो-राम ।।
मात्र ससुरेक भरोसे अहाँ केँ,
जनमौलनि की बाप यौ ।
अपना घरमे पावनि – तिहारे,
सुनै छी भेटय भात यौ ।
अइठाँ, तुलसीफूल केँ खुद्दी कहैछी ,
तरुआ कें कुकुरक कान ।
बाजू ओझाजी रामो-राम ।।
लाजो ने होइए मुँह बजैछी,
हमरा 'ई - ओ' चाही ।
अछि बिकायल देहो अहाँ केर,
बापो छथिए गबाही ।
कतेक बेर छी घुरल सभा सँ ,
तै पर एते गुमान ।
बाजू ओझाजी रामो-राम ।।
मिथिला केर युवक की जानए,
जोड़ब नेह - सिनेह ।
पाइक लोभें, आँखि मूनि जे,
बेचि लैत अछि देह ।
अबइछ बनि रावणे ससुर गृ ह,
कहतै कोना लोक राम ।
बाजू ओझाजी रामो-राम ।।
लाज जँ हो तऽ ठोर लियऽ सीबि
कान खोलि कऽ सूनू यौ ।
एक दोसरक अछि परिपूरक,
नर आ नारी दुनू यौ।
सरिपहु श्रृंगार छथि पुरुष नारी केर
नारी सँ सृष्टिक विधान ।
बाजू ओझाजी रामो-राम ।।
( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह 'तोरा अँगना मे'क गीत क्र. -- )
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