Wednesday 15 February 2012

से फगुआ खेलायत कोना कऽ

से फगुआ खेलायत कोना कऽ



जकरा   सोझाँ   मे    नेना  कनै  छै ,
 माँ  की  खैब ?  भूख अछि लागल” ।
 से   पूआ    पकाओत      कोना   कऽ,
जकरा  आँगन  वसन्त  नहि  आयल ।।




छै  जेबी    जकर     खाली – खाली,
आ   खरची   घरक    लटपटायल  ।
से  फगुआ  खेलायत   कोना   कऽ,
जकरा आङन  वसन्त नहि आयल ।।


बीस बरखक तपस्या तऽ कैलक तखन,
भेटलैक      बड़कीटा         डीगरी ।
से दर - दर के ठोकर खेलक       मुदा,
नहि   भेटलैक      एकोटा   नोकरी  ।


जकर  स्वप्नक  महल    ढहि  गेलै,
छै   आशा - कमल         मुरुझायल ।
से  डम्फा   बजाओत     कोना  कऽ,
जकरा आङन वसन्त  नहि आयल ।।


 आयल  कते  ठाम   औना – पथारी,
ने  भेटलैक  पैंचे,  ने  भेटलै     उधारी
ने घर मे छै चुटकी भरि मड़ुओ खेसारी ,
की करतैक भानस,  से चिन्ता छै  भारी
बेकल भऽ* कनैत छैक  गृहणी  बेचारी,
कतऽ छह  बैसल  हौ  कृष्ण – मुरारी !


जकरा   सोझाँ   मे    नेना  कनै  छै ,
 माँ  की  खैब ?  भूख अछि लागल” ।
 से   पूआ    पकाओत      कोना   कऽ,
जकरा  आँगन  वसन्त  नहि  आयल ।।


नूआ छै  गुदरी  आ  धोती   छै   फाटल,
बौआक  अंगा पर  चिप्पी  छै  साटल  
बाँचल   छै   जकरा      घऽरे - घरारी ,
से कीनत कोना  नऽव धोती आ साड़ी ।


जकरा   रहबा  ले   एकटा   मड़ैया ,
आ    मड़ैया    सेहो    ढनमनायल
से   रंग    उड़ायत     कोना    कऽ,
जकरा  आङन  वसन्त  नहि आयल ।।




जकरा   रहबा  ले   एकटा   मड़ैया ,
आ    मड़ैया    सेहो    ढनमनायल
से   रंग    उड़ायत     कोना    कऽ,
जकरा  आङन  वसन्त  नहि आयल ।।




* Original print मे “बेकल भऽ” केर स्थान पर “शोकाकुल” शब्द आयल अछि, जे कि बाद मे हमरा युक्तिसंगत नञि बुझना गेल । “शोकाकुल” शब्द मैथिली मे प्रायः ककरो मृत्युक सन्दर्भ मे प्रयुक्त होइत अछि । तेँ आगाँ केर लेल एहि ब्लॉग पर देल गेल परिवर्तित पाठ केँ ग्राह्य मानल जाए ।



( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह तोरा अङना मे” क गीत क्र. २२ )
 संगहि “गीतक फुलवारी” मे सेहो प्रकाशित ।

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